आज दिनांक ३/२/१० को महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा में अम्बेडकर स्टूडेन्ट फोरम की केन्द्रीय कार्यकारिणी की एक बैठक हुई इसमे विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा दलितविरोधी कार्यवाहियों के खिलाफ आंदोलन को और तेज करने की रूपरेखा पर विचार किया गया फोरम की तरफ से एक निंदा प्रस्ताव भी पारित किया गया, जिसमे जनसंचार विभाग के प्रोफेसर अनिल चमड़िया को कुलपति द्वारा हटाये जाने की घोर भर्त्सना की गयी. निंदा प्रस्ताव में यह कहा गया कि प्रो. अनिल चमड़िया देश के प्रतिष्ठित बुद्धिजीवी और पत्रकार हैं. वे लगातार दलित, शोषित और वंचित तबकों के लिये लिखते रहे हैंऔर आंदोलनो में हिस्सा भी लेते रहे हैं. हमेशा न्याय और सच का पक्ष लेने वाले प्रो. चमड़िया वि.वि. में बेहद लोकप्रिय प्राध्यापक रहे हैं और छात्रों के अकादमिक विकास के लिये हमेशा तत्पर और सक्रिय रहे हैं. सामंती और जातिवादी कुलपति विभूति नरायण राय को यही रास नहीं आया और उन्होंने प्रो. चमड़िया को साजिश के तहत वि.वि. से हटा दिया.
फोरम ने इस पर अपनी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि अम्बेडकर की भूमि वर्धा में दलित विरोधी किसी भी कदम को हम और बर्दास्त नहीं करेंगे. कार्यकारिणी ने प्रो. चमड़िया के प्रति वि.वि. प्रशासन के इस जातिवादी और शाजिसाना कदम के खिलाफ आंदोलन तेज करने का निर्णय लिया है. आज से एक हस्ताक्षर अभियान चलाया जा रहा है जिसे राष्ट्रपति, मानव संसाधन विकास मंत्री और यू.जी.सी. को भेजा जायेगा. फोरम ने वि.वि. के सभी छात्रों से यह अपील की है कि वे विश्वविद्यालय के छात्र विरोधी, सामंती नजरिये के खिलाफ एक जुट हों और वि.वि. के प्रत्येक कार्यक्रम का तब-तक वहिस्कार करें जब तक एक लोकतांत्रिक स्थिति कायम नहीं की जाती. गौरतलब है कि पिछले दिनों आयोजित “कथा-समय” का भी फोरम के सदस्यों ने पूरी तरह वहिस्कार किया. इन स्थितियों के बने रहने तक विश्वविद्यालय के दलित छात्र वि.वि. में भविष्य में आयोजित होने वाले कार्यक्रमों का भी वहिस्कार जारी रखेंगे. फोरम ने चेतावनी दी कि यदि प्रो. अनिल चमड़िया को वि.वि. में वापस नहीं लाया गया तो यहाँ का दलित छात्र समुदाय चुप नहीं बैठेगा और आन्दोलन को व्यापक स्तर पर छेड़ा जायेगा.
केन्द्रीय सदस्य
अम्बेडकर स्टूडेन्ट फोरम
म.गा.अ.हि.वि.वि., वर्धा
वर्धा मेल से प्राप्त
उन्होनें तो कुलपति महोदय पर ही इंजाम लगाया कि वो मेरे पीछे पड़े हैं। कहीं आप विश्व सुन्दरी या किसी पार्टी के जाने माने नेता या फिर चोर तो नहीं, जो वीएन राय उनके पीछे पड़े हैं। अनिल चमड़िया के पीछे पड़े रहने के अलावा शायद उनके पास और कोई काम नहीं है, चमड़िया जी को यह अवश्य ज्ञात होगा कि उनको विश्वविद्यालय में कुलपति महोदय ही लेकर आए थे, जब विश्वविद्यालय के जनसंचार विभाग में अध्यापकों का अभाव था और उन्होने इस आस से उनकी नियुक्ति भी की थी कि वे छात्र-छात्राओं को पत्रकारिता के गुण सिखाएंगे, पर हुआ कुछ अलग। चमड़ियाजी अपनी कमेटी बनाते रहे, छात्रों को प्रशासन के खिलाफ भड़काने का काम करते रहे। उनके कुछ छात्र तो इतने अच्छे हैं जो कुलपति, प्रति-कुलपति, विभागाध्यक्ष, िशक्षकगण को गाली देने से भी नहीं चूकते। ये बात सभी के संज्ञान में है, पर कहने वाला कोई नहीं? शायद यही िशक्षा आपने छात्रों को दी है, दे भी रहे हैं कि अपने से बड़ों को गाली दें, उनका अनादर करें। बहुत अच्छा पाठ पढ़ाया है आपने।
जवाब देंहटाएंअनिल चमड़िया जिस प्रकार का आरोप लगा रहे हैं, यदि उन पर गौर फरमाया जाए तो दूध का दूध और पानी का पानी होने में जरा-सी देर भी नहीं लगेगी। आप वीएन राय पर आरोप लगा रहे हैं कि स्वजातीय लोगों की बातों में आकर आपकी नियुक्ति को निरस्त किया है। यदि ऐसा ही है तो आप इतने माह इस विश्वविद्यालय में कैसे और किस आधार पर टिके रहे? यदि जातिगत ही मामला है तो विश्वविद्यालय में आपको भी पता होगा कि दलित छात्रों की संख्या कितनी है। जहां तक पिछड़ा वर्ग और सामान्य वर्ग दोनों से तो ज्यादा है। और तो और कुछ विभाग तो ऐसे भी हैं जहां सामान्य वर्ग का एक भी छात्र नहीं है, तो इसको आप क्या कहेंगे- दलितवादी निर्णय? आप तो यहां तक भी कहते हैं कि यहां पढ़ रहे लड़कों के दबाव में आकर वीसी ने आपकी नियुक्ति की थी, कहीं ऐसा सुना है कि किसी विश्वविद्यालय के छात्रों के दबाव में आकर किसी की नियुक्ति हुई हो। तब तो छात्र यदि चाहेगें कि किसी आठ पास या पांचवी फेल को टीचर बना दिया जाए तो क्या वो टीचर बन जाएगा, चाहे उसने सम्बंधित फील्ड में कांट्रीव्यूशन क्यों न किया हो। विश्वविद्यालय में कर्मचारियों की नियुक्ति उसकी योग्यता के आधार पर वीसी या सम्बंधित प्रािधकारी तो नियुक्त कर सकते हैं, पर किसी प्रोफेसर/रीडर/लैक्चरर को नियुक्ति नहीं कर सकते। जब तक वह टीचर बनने की पूर्ण योग्यता नहीं रखता?
यदि आपको लगाता है कि आपको बिना डिग्री के आधार पर प्रोफेसर बनाये जाने चाहिए तो अपने मित्र और साथीगण जो अभी एम.ए. कर रहे हैं या फिर एम.फिल/पी-एचडी कर रहे हैं, उनको भी सलाह दें कि वे पढ़ाई छोड़ दें, तब भी वे प्रोफेसर बन जाएगें?? मेरा यहां दो बार? लगाने का तात्पर्य केवल इतना है कि सभी लोगों को पढ़ाई छोड़ देनी चाहिए । इसमें मैं भी शामिल हूं, क्योंकि मैंने भी बी.कॉम पास किया है, मुझे भी पी-एचडी नहीं करनी चाहिए क्योंकि पी-एचडी में पूरे-पूरे दो तीन साल के बाद, तब भी संभावना ही है कि टीचर बनूगां या नहीं, पर आप तो बिना डिग्री के पैमाना पूरा कर रहे हैं। रही बात अपनी बसी-बसाई गृहस्थी छोड़कर पराए शहर में आने की, यह तो धन का मोह ही है जब पैसे के खातिर इंसान अपना जिस्म, हत्या, चोरी-डकैती-लूटपाट, यहां तक की अपने मां-बाप को भी बेच देता है, तब आपनी बसी-बसाई घर-गृहस्थी को छोड़कर आना कौन सी बड़ी बात है।
जिस एक्जीक्यूटिव कमेटी (ईसी) की बात आप कहे रहे हैं, उसमें 18 सदस्य हैं और केवल 8 सदस्यों ने वीसी के कहने पर आपको निकाल दिया। यानि आपके कहने का मतलब यह भी है कि ईसी में जितने भी सदस्य हैं वो नासमझ/अज्ञानी हैं। सारा ज्ञान आप में कूट-कूटकर भरा हुआ है। आपका तो यहां तक कहना है कि वीएन राय के कामकाज के तरीके के कारण विश्णु नागर ने ईसी से इस्तीफा दे दिया है, इसका तात्पर्य यह है कि कुलपति महोदय को आप से सीखना पडे़गा कि किस प्रकार काम किया जाता है तब तो वीएन राय जी को प्रोफेसर न बनाकर आपको अपनी जगह कुलपति बनाना चाहिए? रही बात विष्णु नागर जी के इस्तीफे की तो किस कारण से उन्होंने इसी से इस्तीफा दिया। ये तो उन से अच्छा और कोई नहीं बता सकता? विश्वविद्यालय में जिस प्रकार की गतिविधियां इस समय चल रही हैं, यदि प्रशासन ने जल्द ही कोई उचित कदम नहीं उठाए तो विश्वविद्यालय की गरिमा को धूमिल होने से कोई नहीं बचा सकता।
(वर्धा हिन्दी विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा लिखा गया.)