मंगलवार, 26 जनवरी 2010

कथाकारों, सामंतवाद के गढ़ में आपका स्वागत है.

प्रो. असगर वजहात, संजीव, चित्रा मुदगल, वीरेन्द्र यादव, अब्दुल बिस्मिल्लाह, गंगाप्रसाद विमल, हरि भटनागर, अजय नावरिया, भगवान दास मोरवाल, एस.आर. हरनोट, वंदना राग, महुआ माझी, राजेन्द्र राजन, गीत चतुर्वेदी, मनोज रूपड़ा, पंकज मित्र, मो. आरिफ, तेजेन्द्र शर्मा, मृदुला शुक्ला, वीरेन्द्र मोहन, मीनाक्षी जोशी, बसंत त्रिपाठी, प्रमोद कुमार तिवारी, सूरज प्रकाश, अजीत राय, आशा पाण्डेय, विरेन्द्र मोहन, से.रा. यात्री, आप सब को हिन्दी विश्वविद्यालय के कथा समय में आमंत्रित किया गया है. हिन्दी कथा साहित्य की दो दशकों कॊ यात्रा में यदि सबसे अच्छे कथाकार और उपन्यासकार विभूतिनरायण राय हैं तो, तो बेरोजगारी की स्थिति में यह एक पंक्ति किसी भी बेरोजगार आगंतुक को रोजगार दे सकती है और यहाँ वैकेंसी नहीं निकलती, आदमी निकल आया काम का, तो बैकेंसी बन जाती है. तो हे भद्रजनों, कथाकारों हम आपका स्वागत करते हैं कि “जिन पंचटीला नईं देख्या ओ न भया कथाकार”.
पिछले दिनों हिन्दी विश्वविद्यालय के प्रशासन द्वारा की जा रही तानाशाही और सवर्णवादी रूप आपको अखबारों और ब्लागों के माध्यम से शायद पता चला ही हो जिस पर विश्वविद्यालय के कुछ छात्रों ने लिखा था. विभूतिनरायण राय ने शायद उन छात्रों को बुलाकर बात-चीत करने का प्रयास भी किया था, महोदय यहाँ छात्रों को दलाल बनाने की यही प्रक्रिया है. खैर, यह कथा का समय है अक्सर कई पाप करने के बाद ब्रहमणों की व सवर्णों की यह आदत होती है कि वे कथा सुन लेते हैं और पाप से मुक्त हो जाते हैं. राय साब यानि दरोगा जी ने अपने थाने में कथा रखी है और आप जैसे पंडितों को आमन्त्रित किया है ताकि उन्हें कई कुकर्मो के बाद एक सुकर्म करके थोड़ा मुक्ति का एहसास हो. इस तरह की कथा वे अक्सर विश्वविद्यालय में करवाते रहते हैं जिनके विषय से आपको लगेगा कि क्रांति अब हुई की तब और कई बार माईक पर क्रांति करते भी हैं अक्सर छद्म प्रगतिशील यही करते हैं. यह उनका पी.आर.ओ. प्रोग्राम है जिसमे वे साहित्यिक बुद्धिजीवियों के बीच अपनी साख मजबूत करते हैं. तो भद्रजनों सामंतवाद के गढ़ में हम आपका स्वागत करते हैं. आप सब कहानी के कुछ बीज तलासियेगा आपको उगे उगाये पौधे मिल जायेंगे, कहानी के पेड़ मिल जायेंगे, उपन्यासों के लहलहाते खेत मिल जायेंगे. इस पथरीली जमीन में कथा की उर्बरा शक्ति बहुत है, उनके तकले सिरों को झांकियेगा जिनके सिर में अब बाल नहीं बचे हैं बची है तो बस चमकती हुई खोपड़ी पर वहीं कहीं चमकती खोपड़ियों में होगा आपका पात्र. जो दिल तो बच्चा है थोड़ा कच्चा है अभी भी गाता रहता है. यहीं पर आपको मिलेंगे प्रख्यात चोर गुरू अनिल राय अंकित, पर अब ये टाई नहीं लगाते इसलिये गुमराह मत होइयेगा और ये चोर जैसे नहीं मीडिया विभाग के हेड जैसे दिखते हैं. अगर हो सके तो इन्हें बधाई दे दीजियेगा क्योंकि आभी हाल में ही इनकी नियुक्ति को इ.सी. द्वारा मान्य करवाया जा चुका है अब इनकी चोरी ही इनकी दादागीर बन गयी है कारण कि अनिल अंकित “राय” और विभूतिनरायण “राय” आप समझ गये होंगे, ये जाति बड़ी इफेक्टिब चीज होती है और अगर रिश्तेदारी भी हो तो क्या कहने. यहाँ भी कुछ ऐसा ही मामला है साब.
दरोगा साब हर रोज इनकाउंटर के मूड में रहते हैं कभी किसी दलित छात्र का तो कभी किसी अध्यापक का आप आयेंगे तो पता चलेगा कि हाल में कौन-कौन शिकार हुआ है. इस इनकाउंटर को कहानी की भाषा में समझिये यह इलाहाबाद वाला इनकाऊंटर नहीं है. दलित अध्यापक कारुन्यकरा को रोज एक नोटिस मिलती है उनसे आप मिलियेगा तो पूछियेगा कि ब्रह्मणवाद मुर्दावाद गाली किसके लिये है. विश्वविद्यालय का हर अध्यापक इस तानाशाही पर अंदर-अंदर सुगबुगाता है पर पेट का सवाल है सो दरोगा साब से कुछ नहीं बोलता.
और थोड़ा धीरे से कान लगाकर सुनिये ये जो आपका स्वागत करने के लिये पालीवाल जी हैं इन्होंने पिछले दिनों किसी महिला कर्मचारी के साथ छेड़खानी की थी और और पता चला कि नाड़ी और धड़कन पर बात करते-करते कुछ प्रेक्टिकल...............अब ज्याने दीजिये, बुजुर्ग हैं ६० साल के पर ऐसा ही कुछ कई दिनों तक विश्वविद्यालय में गूंजता रहा. आप जब इनसे हाथ मिलाइये तो जरा बच के रहिये और आप किस कमरे में ठहरे हैं यह कतई मत बताईयेगा, सोते समय कुंडी बंद कर लीजियेगा और जब भी मिलियेगा दो-चार लोगों के साथ बस...हां ये इस बात से दुखी हैं कि स्नोवाबार्नों क्यों नहीं आ रही हैं. विशेष कर्तव्य अधिकारी राकेश जी बहुत नेक इंसान हैं अक्सर थानेदार साब को काबू में कर लेते हैं. एक दिन एक लड़्की को क्लास में बुलाकर बोले कि ये लड़की बिकनी पहने तो कैसी लगेगी यह आपको अटपटा लगा होगा पर महिलाओं के बारे में यहाँ की छात्राओं के बारे में आला अधिकारियों के विचार ऐसे ही हैं. प्राक्टर मनोज कुमार के किस्से किसी दिन इत्मिनान से बताऊंगा पर नये साल पर इन्होंने छात्र-छात्राओं को तोहफा दिया और पुरुष छात्रावास में छात्राओं के जाने पर प्रतिबंध लगा दिया. शायद किसी छात्रा ने किसी छात्र को फटकारा था और सभी छात्राऒ पर प्रतिबंध। प्रतिबंधित करने का आदेश सामंत के मुंसी राय साब ने दिया. बाकी कहानिया आप यहाँ आ के ढूंढ़ियेगा. हमने अपने कैमरे से १३ जनवरी की शाम को कुछ दिलचस्प फोटो खींचे हैं जो आपको मुफ्त मिल जायेंगे और आप इन चेहरों को पहचानियेगा जबकि वे आपके इर्द गिर्द ही रहेंगे. हिन्दी विभाग के एक शिक्षक-शिक्षिका की कहानी.......व कामिल बुल्के अंतरराष्ट्रीय छात्रावास की कई सारी काहानियां जो हर दो तीन घंटे में पुरानी हो जाती है, उपन्यास के कथानक सुबह-सुबह झाड़ू के साथ बुहार दिये जाते हैं ये सब आपको बताउंगा और तब तक बताऊंगा जब तक ये सुधरते नहीं, जबकि मैं जानता हूँ कि ये नहीं सुधरेंगे।
वर्धा मेल से प्राप्त १३ तारीख की फोटो भी आप यहीं पर देखेंगे ऐसी मेल में सूचना थी.

1 टिप्पणी: