सोमवार, 8 मार्च 2010

हिन्दी विश्वविद्यालय में तानाशाही का जिम्मेदार कौन

हिन्दी विश्वविद्यालय में छात्रों पर हो रहा अत्याचार निरन्तर जारी है जिसका जिम्मेदार कौन है यह पूरे घटनाक्रम को समझने पर पता लगाया जा सकता है. आखिर एक बनते हुए विश्वविद्यालय में निरन्तर चल रही तानाशाही पर कौन लगाम लगायेगा.
मीडिया विभाग के एक छात्र अनिल को विश्वविद्यालय से निष्काशित करने के पीछे प्राक्टर मनोज कुमार और अनिल अंकित राय ने अपनी पूरी ताकत लगा दी. मनोज कुमार कथित तौर पर गाँधीवादी कार्यकर्ता रहे हैं पर इनका गाँधीवाद किस तरह का है यह इस घटना और उनकी क्रूर कार्यवाहियों से समझा जा सकता है. दिनांक १६ नवम्बर की बात है जब मीडिया विभाग में एक सेमिनार चल रहा था और अनिल नाम के एक शोधार्थी जब सेमिनार में बैठने गये तो उन्हें यह कहा गया कि वे नहीं बैठ सकते जबकि विश्वविद्यालय की परम्परा में अंतरानुसाशनिक विषयों के कारण कोई भी छात्र सेमिनार में बैठते रहे हैं. वहाँ पर बैठे छात्रों ने हस्तक्षेप कर अध्यापक अख्तर आलम से जब यह बात कही तो अनिल को सेमिनार में बैठ्ने दिया गया. जब एक छात्र द्वारा सेमिनार में कुछ गलत तथ्य प्रस्तुत किया गया तो अनिल उसे सुधारने के लिये सही तथ्य रखा इस बात पर अख्तर आलम ने उन्हें रोका और कहा कि आप बैठ सकते हैं पर कुछ बोल नहीं सकते. यह घटना है जिस आधार पर विश्वविद्यालय से एक छात्र को निष्कासित किया जाता है.
इस निष्कासन के कुछ महत्वपूर्ण पहलू हैं जिससे निष्कासन के परोक्ष कारणों को भी समझा जा सकता है.
सेमिनार के बाद अख्तर आलम से शोधार्थी अनिल ने लम्बी बात-चीत की और अख्तर आलम भी इस घटना को कोई तरजीह न देते हुए संतुष्ट दिखे. अनिल राय अंकित चोर गुरु (वर्धा) द्वारा अख्तर आलम से कहकर एक पत्र बनवाया गया जिसमे लिखा गया कि छात्र अनिल ने कक्षा को बाधित किया और इस आधार पर प्राक्टर मनोज कुमार और अनिल राय अंकित जो गहरे मित्र हैं ने मिलकर निष्कासन की एक रूपरेखा बनायी. पहले कारण बताओ नोटिस दिया गया जिसका एक जबाब शोधार्थी अनिल ने ३ पन्नों में विस्तृत रूप से तैयार करके दिया पर इस जबाब से प्राक्टर मनोज कुमार संतुष्ट नहीं हुए क्योंकि उन्हें संतुष्ट होना ही नहीं था यदि होते भी तो अनिल राय अंकित उसको असंतुष्टि में बदल देते यह जबाब कुलपति विभूति नरायण राय को प्रस्तुत किया गया और पूरे मसले पर उन्हों ने एक जाँच कमेटी बना दी. जांच कमेटी में अशोक नाथ त्रिपाठी, विश्वविद्यालय में दलित उत्पीड़न के लिये कुख्यात आत्म प्रकाश श्रीवास्तव व मनोज कुमार के विभाग के एक अध्यापक निपेन्द्र मोदी को रखा गया. इसमे किसी भी छात्र प्रतिनिधि को शामिल करना विश्वविद्यालय ने उचित नहीं समझा चूंकि सब कुछ अनिल राय अंकित और प्राक्टर द्वारा पहले से तय कर लिया गया था जिसका आगे हम विवरण प्रस्तुत करेंगे.
कमेटी की जाँच प्रक्रिया-
१- जाँच कमेटी ने अनिल से कोई बातचीत नहीं की न ही उनके किसी पक्ष को सुना.
२- जाँच कमेटी ने घटना पर उपस्थित किसी भी छात्र से कोई बातचीत नहीं की.
३- जाँच कमेटी के सदस्यों से कुछ छात्रों ने बात की जिससे पता चला कि अनिल राय अंकित और प्राक्टर मनोज कुमार के बयानों के आधार पर यह जाँच प्रक्रिया पूरी कर ली गयी.
४- इस पूरी प्रक्रिया में महज एक हप्ते लगे पर अनिल को निष्कासित तब किया गया जब अनिल चमड़िया के मामले पर कुलपति को छात्र अनिल द्वारा एक पत्र लिखा गया और अपनी असहमति दर्ज कराने के साथ पी.एच.डी. छोड़ने की बात कही गयी. यानि घटना के ४ माह बाद दिनांक १७ फरवरी को निष्कासन की नोटिस निकाली गयी.
इस मनमानी कार्यवाही के खिलाफ सभी छात्रों की एक आम सभा बुलायी गयी जिसमे छात्रों ने इस मनमानी कार्यवाही पर प्राक्टर का घेराव किया और उनसे कुछ सवाल पूछे जिसका जबाब प्राक्टर मनोज कुमार के पास नहीं था. मसलन प्राक्टर द्वारा किस समय सीमा तक किसी छात्र को निष्कासित किया जा सकता है यह अध्यादेश के हवाले से स्पष्ट करें? पर प्राक्टर मनोज कुमार को अध्यादेश तक नहीं पता था न ही उन्हें उनका अधिकार जब छात्रों ने विश्वविद्यालय के अधिनियम के अनुच्छेद १८, अध्यादेश १२ की धारा १० बी व धारा के बिंदु ११ को उन्हें पढ़ाया तो वे चुप हो गये. इस तरह के कई सवाल किये गये पर प्राक्टर मनोज कुमार के पास उसका कोई जबाब नहीं था और वे यह बोलते हुए कि हम इसे देखेंगे, वहाँ से चले गये. इस आधार पर छात्रों द्वारा एक हस्ताक्षर किया गया जिसमे अनिल के अन्यायपूर्ण निष्कासन को तुरंत वापस लेने की मांग की गयी पर प्राक्टर मनोज कुमार ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया बल्कि निष्कासन की नोटिस कई दिनों तक अपने पास रखे. होली की छुट्टियों में जब छात्र घर चले गये तो वही अवैद्य नोटिस जो विश्वविद्यालय अधिनियम में प्राक्टर के अधिकारों के खिलाफ थी प्राक्टर द्वारा अनिल को दी गयी जिसे अनिल ने इस आधार पर अस्वीकृत कर दिया कि यह गैरकानूनी है क्योंकि प्राक्टर द्वारा किसी छात्र का निष्कासन अधिकतम १५ दिनों के लिये किया जा सकता था.
निष्कासन में न केवल विभाग बल्कि हास्टल और विश्वविद्यालय से भी निष्कासित किया गया और प्रतिदिन हास्टल में पुलिस भेजकर अनिल जिस भी छात्र के कमरे में ठहरते उन्हें परेशान किया जाता रहा. यह शहर में कर्फ्यू नहीं था बल्कि एक छात्र के लिये उस विश्वविद्यालय में कर्फ्यू लगा दिया गया जिसके कुलपति विभूति नारायण राय है. इस अन्याय पूर्ण कार्यवाही से क्या विभूति नारायण राय जी वाकिफ नहीं रहे या अभी तक नहीं हैं?