बुधवार, 16 दिसंबर 2009

छलित छात्रों का अनशन आठवे दिन भी जारी

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में दलित छात्र राहुल काम्बले को पीएच.डी. में प्रवेश न दिए जाने और विभागाध्यक्ष द्धारा उत्पीड़ित किए जाने को लेकर अम्बेडकर स्टुडेंट्स फोरम द्वारा आज आठवे दिन भी अनशन जारी रहा। आमरण अनशन पर बैठे दो छात्र चार दिनों से गंभीर अवस्था में अस्पताल में भर्ती है। विश्वविद्यालय को ऐसी स्थिति छोड़कर कुलपति बाहर चले गए है।इस बीच फोरम ने आम छात्रों की एक सभा बुलाकर स्टुडेंट्स को-आॅर्डिनेशन कमेटी का गठन किया। इस सभा में उपस्थित छात्रों ने प्रशासन के रवैये के खिलाफ एक निंदा प्रस्ताव पारित किया और फोरम की मांगों को समर्थन जताया। इस कमिटी ने प्रति कुलपति से कई बार बातचीत कर न्यायपूर्ण हल की मांग की और राहुल काम्बले को प्रवेश के संदर्भ तथ्य और तर्क रखे। यद्यपि प्रति कुलपति के पास इन तर्को का कोई ठोस जवाब नही था। परंतु वे राहुल का प्रवेश लेने के लिए राजी नहीं हुए और बार-बार एक कमेटी बनाकर जांच करवाने को लेकर अड़िग रहे। प्रति कुलपति का कहना था कि अनशन को समाप्त करने के बाद ही यह कमेटी बनाई जाएगी। जबकि राहूल के ही मसले पर बनी पूर्व की ही एक कमेटी द्वारा दी गई संस्तुति को अब तक न तो लागू किया गया और न ही सार्वजनिक। इस बीच प्रशासन ने इस मामले को तब और उलझा दिया जब विवि के ही एक दलित लेक्चरर शैलेश कदम मरजी को राहुल के स्थान पर प्रवेश दिया तथा राहुल के प्रोफेसर पिता को वर्धा बुलाकर बरगलाने की कोशिश की। जिससे छात्रों में और असंतोष भड़क गया। आमरण अनशन पर बैठे दो छात्र राहुल काम्बले और ओमप्रकाश बैरागी का अस्पताल में इलाज चल रहा है। विवि के केंद्रिय पुस्तकालय के सामने चल रहे अनशन के आज आठवे दिन संतोष कुमार बघेल श्रृखंला अनशन पर बैठे थे।

दलित कांबले अस्‍पताल में, सवर्ण छात्राएं विवि में दाखिल


जब रोम जल रहा है, नीरो मिट्टी का तेल डाल रहा है। जहाँ धुंआ उठ रहा है वहाँ हवा कर रहा है। बची हुई नमी को सूखा कर रहा है और जलाने पर पूरा-पूरा आमादा है। इतिहास की घटना का मुहावरा पंचटीला की पहाड़ियों पर उतर रहा है। गांधी के नाम पर बने विश्वविद्यालय में गांधी का रास्ता चुक रहा है, दम तोड़ रहा है।
कुछ ऐसी ही स्थिति है महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा की जहाँ पिछले आठ दिनों से कुछ छात्र आमरण अनशन पर हैं। जिसमे दो छात्र राहुल काम्बले, ओम प्रकाश वैरागी अस्पताल में भर्ती कराये जा चुके हैं। इन अंदोलनकारी छात्रों की हालत गम्भीर है। इस बीच लाखों रूपये खर्च करके किया जाने वाला आडम्बरपूर्ण कार्यक्रम दीक्षांत समारोह खत्म हो चुका है और कुलपति विभूति नारायण राय इस स्थिति को ऐसा ही छोड़ विश्वविद्यालय से बाहर चले गये हैं।
अनुवाद विद्यापीठ के प्रमुख प्रो। आत्मप्रकाश श्रीवास्तव द्वारा दलित छात्र राहुल काम्बले के उत्पीड़न व विभाग में प्रवेश न दिये जाने की वजह से शुरू हुए इस अनशन को वि.वि. प्रशासन स्थानीय अखबारों में झूठा आरोप बता कर ख़ारिज कर रहा है। जबकि वि.वि. में आत्म प्रकाश का जातिवादी रवैया पिछली कई घटनाओं के आधार पर उजागर हो चुका है। प्रशासन के उच्च अधिकारी इस मसले को सुलझाने के पक्ष में भी नहीं हैं क्योंकि वे इसे अपने प्रतिष्ठा का मसला मान रहे हैं। जबकि दूसरी तरफ एक दलित छात्र का उत्पीड़न उन्हें स्वाभाविक सा प्रतीत हो रहा है। शायद इनकी नज़र में दलितों की कोई प्रतिष्ठा नहीं होत। उच्च अधिकारियों में ज्यादातर लोग अपनेआप को प्रगतिशील कहलाना पसंद करते हैं और देश दुनिया में उन्हें इसी लिहाज़ से जाना भी जाता है, चाहे वह प्रतिकुलपति नदीम हसनैन हों या फिर कुलपति विभूतिनारायण राय। लेकिन क्या यह एक तरह का सवर्णवाद नहीं है जहाँ 3 माह से उत्पीड़ित होता कोई छात्र आमरण अनशन पर बैठे और आमरण अनशन के स्थगन के बिना उच्चाधिकारी किसी कार्यवाही पर राजी न हों। यह मसला वि.वि. के सवर्णवादी रुख को ही इंगित करता है जिसकी उम्मीद यहाँ के विद्यार्थी, शिक्षक और देश के दूसरे हिस्से के शुभचिंतक लोग बतौर कुलपति विभूति नारायण राय से नहीं करते। वि.वि. के ही भाषा प्रौद्योगिकी नामक विभाग में दो ऐसी छात्राओं का प्रवेश लिया जाता है जो साक्षात्कार में सम्मिलित नहीं थीं। उनका नाम गुंजन शर्मा और अर्चना शर्मा है। यह प्रवेश किस आधार पर किया जाता है? बकौल प्रतिकुलपति, “यह प्रवेश विभाग प्रमुख की नीयत के आधार पर हुआ है, उन्होंने चाहा और प्रवेश ले लिया गया।” इस चाहने के पीछे का क्या कारण था? क्या यह नहीं कि ये दोनों छात्रायें सवर्ण थी और विभाग प्रमुख महेन्द्र पाण्डेय भी सवर्ण। और……….नीयत बन गयी। दरअसल, प्रतिकुलपति द्वारा कहे इसी वाक्य को राहुल काम्बले भी कह रहे हैं कि नीयत की व्याख्या करके देखा जाय कि उसके विभागाध्यक्ष आत्मप्रकाश की नीयत उसके लिये क्यों ख़राब है पर प्रशासन इस पर राजी नहीं है। तो इस बात को क्यों न माना जाय कि दलित छात्रों के लिये प्रशासन की नीयत भी खराब है। आखिर किसी प्रशासन या व्यक्ति की निष्पक्षता और प्रगतिशीलता को मापने के क्या पैमाने होंगे। प्रगतिशीलता की मुहर या उसके व्यवहार?


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